Thursday, May 28, 2020

भेद प्रार्थना का जो जाने


हमारी प्रार्थनाएं हमारे मन की गहराई में छिपी आकांक्षाओं को प्रकट करने में अति सहायक होती हैं. हर धर्म में प्रार्थना का बहुत महत्व बताया गया है, जब हम परम श्रद्धा के साथ किसी इष्ट अथवा परमात्मा के सामने बैठकर प्रार्थना करते हैं तो हमें ज्ञात भी नहीं होता कि अगले क्षण भीतर से जो शब्द या वाक्य हम बोलने वाले हैं वह क्या होने वाला है. प्रार्थना सोच-सोच कर नहीं की जाती, न ही किसी रटे रटाये भजन या श्लोक को बोलकर की जाती है. यह तो स्वतः स्फूर्त होती है और हृदय की गहराइयों से निकलती है. हो सकता है वर्षों तक फिर दोबारा वे शब्द हमारे मुख से प्रकट  भी न हों, पर कभी न कभी जब वह पूर्ण होती है तब हमें याद आता है, या नहीं भी आ सकता. किन्तु इससे कोई अंतर नहीं पड़ता. प्रतिदिन हमें कुछ समय प्रार्थना को देना चाहिए, यदि हम कह नहीं सकते तो एक नोटबुक में उसे लिख दें जो भी हमारी दिली इच्छा है, और शेष सब अस्तित्त्व पर छोड़ दें. शुभता की चाह मन में जगे हर प्रार्थना का यही लक्ष्य है.

4 comments:

  1. सार्थक सन्देश, अच्छी कामना है।

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  2. स्वागत व आभार शास्त्री जी !

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  3. प्रार्थना से कुछ भी बेहतर नहीं जीवन में |सुंदर लघु आलेख अनिता जी |

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  4. सुस्वागतम रेणु जी !

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