Sunday, July 27, 2025

ध्यान ही बना जाता है ज्ञान

ध्यान का फल ज्ञान है, कोई जगत में लगाये या परमात्मा में। संसार में जिसका ज्ञान मिल जाता है, वहाँ से ध्यान हट जाता है क्योंकि ध्यान ज्ञान बन गया है। पदार्थ में जोड़ा ध्यान व्याकुलता को जन्म देता है, क्योंकि जब एक पदार्थ का ज्ञान मिल जाता है, दूसरे को जानने की चाह जग जाती है, पर इतने बड़े जगत में कितना कुछ अनजाना है ।अपनी इस व्याकुलता को भूलने के लिए मानव क्या-क्या नहीं करता? वह अपने आप को इतर कामों में लगाकर उस प्रश्न से बचना चाहता है; जो उसे व्याकुल कर रहा है। वह जगत को दोनों हाथों से बटोर कर अपनी मुट्ठी में कैद करना चाहता है पर वह भी नहीं कर पाता; क्योंकि जगत में सभी कुछ नश्वर है। वह तब भी जगता नहीं बल्कि नींद के उपाय किये जाता है। जब तक कोई मांग है तब तक भीतर की स्थिरता को अनुभव नहीं किया जा सकता। संसार भीतर का प्रतिबिम्ब है। परमात्मा सदा रहस्य बना रहता है, वह हर कदम पर आश्चर्य उत्पन्न होने की स्थिति पैदा कर देता है! यदि कोई परमात्मा में ध्यान लगाये तो वह ज्ञान होने के बाद भी नहीं हटता क्योंकि परमात्मा का ज्ञान कभी पूरा नहीं होता।


Sunday, July 13, 2025

स्वप्न सरिस यह जगत है सारा

संत व शास्त्र कहते हैं, आत्मा जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति इन तीन अवस्थाओं में रहती हुई इस जगत के सुख-दुख का अनुभव करती है।ध्यान में उसे तुरीय या चौथी अवस्था का बोध होता है, जिसमें रहकर वह अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव करती है, जो सत्य है। सत्य शाश्वत है और सदा एक सा है। जागृत अवस्था में मन, बुद्धि, अहंकार, और दसों इन्द्रियां सभी अपने-अपने कार्य में संलग्न होते हैं. स्वप्नावस्था में कर्मेन्द्रियाँ सक्रिय नहीं रहतीं पर ज्ञानेन्द्रियाँ, मन व अहंकार सजग होते हैं. सुषुप्ति अवस्था में मात्र अहंकार बचता है। स्वप्न में देखे विषय मन की ही रचना होते हैं, वे उतने ही असत्य हैं जितना यह जगत, जो दीखता तो है पर वास्तव में वैसा है नहीं. जगत के असत्य होने का प्रमाण अनित्यतता के सिद्धांत से मिलता है। वास्तविक सत्य का बोध क्योंकि अभी तक हुआ नहीं, यह सब सत्य प्रतीत होता है. वास्तविक सत्य वही परमब्रह्म है जिस तक जाना ही मानव का ध्येय है. 


Friday, July 11, 2025

गुरु पूर्णिमा पर अनमोल संदेश

गुरुदेव कहते हैं  “न अभाव में रहो, न प्रभाव में रहो बल्कि स्वभाव में रहो”. अभाव मानव का  सहज स्वभाव नहीं है क्योंकि वास्तव में मानव पूर्ण है. अपूर्णता ऊपर से ओढ़ी गयी है, और चाहे कितनी ही इच्छा पूर्ति क्यों न हो जाये यह मिटने वाली नहीं. आप मुक्त होना चाहते हैं जबकि मुक्त तो आप हैं ही, बंधन खुद के बनाये हुए हैं, ये प्रतीत भर होते हैं. ईश्वर से आपका सम्बन्ध सनातन है, आप उसी के अंश हैं. अज्ञान वश जब आप इस सम्बन्ध को भूल जाते हैं तथा प्रेम को स्वार्थ सम्बन्धों में ढूंढने का प्रयास करते हैं तो दुःख को प्राप्त होते हैं.  आपको अपने जीवन के प्रति जागना है. कुछ बनने की दौड़ में जो द्वंद्व आप भीतर खड़े कर लेते हैं उसके प्रति जागना है. आपके मन को जो अकड़ जकड़ लेती है, असजगता की निशानी है. खाली मन जागरण की खबर देता है , क्योंकि मन का स्वभाव ही ऐसा है कि इसे किसी भी वस्तु से भरा नहीं जा सकता इसमें नीचे पेंदा ही नहीं है, तो क्यों न इसे खाली ही रहने दिया जाये. मुक्ति का अहसास उसी दिन होता है, जब सबसे आगे बढ़ने की वासना से मुक्ति मिल जाती है.