Wednesday, August 8, 2012

प्रेम जो बन जाता है भक्ति


जुलाई २००३ 
भक्त के हृदय में पूर्ण विश्वास होता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है. परमात्मा के वचन उसे बदल देते हैं. वह अनंत है और उसकी महिमा अवर्णनीय है, वह इतना महान है फिर भी वह भक्त को इस योग्य समझता है कि वह उसकी कृपा पाए. वह उसका मित्र है उसकी आत्मा का रक्षक. वह उसकी हर श्वास में है, वही उसके तन में रक्त बन कर प्रवाहित हो रहा है. भक्त उसी से है, वह इतना प्रिय है कि उसका नाम ही जीवन को सुंदर बना रहा है. वह भक्त से दूर तो नहीं फिर भी उसकी आँखों में उसके लिये आँसुओं की झड़ी लग जाती है. कभी उसकी याद आती है तो मन कृतज्ञता से भर जाता है. कभी उसको याद करके अधर मुस्कुराने लगते हैं, वह उसे शक्ति और सामर्थ्य से भर जाता है. वह हर क्षण उसे आगे ले जाना चाहता है. उसने भक्त के हृदय में प्रेम का बीज बोया है, सभी के प्रति प्रेम ! जो अब विशाल वृक्ष बन गया है, उसकी दृष्टि में सभी कुछ उसी चैतन्य के कारण हो रहा है. पंछियों का कलरव हो अथवा मानवों की भाषा, वही तो हर जगह बोल रहा है.

4 comments:

  1. वही है चहुँ और......जज़्बात पर कुदरत के नज़ारे भी देखें ।

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  2. उसने भक्त के हृदय में प्रेम का बीज बोया है, सभी के प्रति प्रेम ! जो अब विशाल वृक्ष बन गया है, उसकी दृष्टि में सभी कुछ उसी चैतन्य के कारण हो रहा है. पंछियों का कलरव हो अथवा मानवों की भाषा, वही तो हर जगह बोल रहा है.
    अब तो बेल फ़ैल गई आनंद फल होई ..... ram ram bhai

    मंगलवार, 7 अगस्त 2012

    भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से

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  3. इमरान, वीरू भाई व धीरेंद्र जी, आप सभी का स्वागत व आभार!

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