Thursday, August 9, 2012

भीतर है संगीत सुहाना


जुलाई २००३ 
महात्मा बुद्ध ने कहा है, ‘जीवन की वीणा के तार को न अधिक ढीला होना चाहिए न ही अधिक कसा होना चाहिए, यथोचित कसे तार ही हमारे भीतर संगीत पैदा करते हैं. हमारा जीवन मध्यम मार्ग को अपना कर ही विकसित होता है’. विवेक और वीतरागता ही मानव को यह समझ देते हैं. जब हम बुद्धि से अपने चैतन्य स्वरूप को जान लेते हैं, यह जानते हैं कि परमात्मा व हममें गुणात्मक रूप से कोई भेद नहीं है, तो जीवन एक खेल प्रतीत होता है. जहाँ हम अपने निज स्वरूप को अनुभव रूप में जानने का लक्ष्य लिये उतरते हैं. बाधाएं तब स्वप्न की तरह आधारहीन प्रतीत होती हैं. जिसे हम बाहर खोजते रहे थे वह अनंत सम्भावनाओं का केन्द्र हमारे ही भीतर है, जब यह ज्ञान होता है तो अपनी पिछली मूर्खताओं पर हँसने का दिल होता है. हम कितने नादां होते हैं जब तुच्छ वस्तुओं के पीछे अपना कीमती समय गंवाते हैं, अपनी ऊर्जा को व्यर्थ ही स्वयं को या दूसरों को पीड़ित करने में खर्च कर देते हैं. हम करुणा और प्रेम के स्रोत भी बन सकते हैं, ज्ञान और आनंद के सागर भी जब परम सत्य से जुड़ते हैं.

7 comments:

  1. बुद्ध का कहा तो खरा सोना है पर अनुभव की कसौटी पर तपकर ही ।

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  2. हम करुणा और प्रेम के स्रोत भी बन सकते हैं, ज्ञान और आनंद के सागर भी जब परम सत्य से जुड़ते हैं.
    बिल्‍कुल सही ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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  3. समेटने लायक सार ,जीवन के लिए सुन्दर ,मनोहर .

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  4. जीवन की वीणा के तार को न अधिक ढीला होना चाहिए न ही अधिक कसा होना चाहिए, यथोचित कसे तार ही हमारे भीतर संगीत पैदा करते हैं.

    जीवन सत्य

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  5. ज्ञान देती प्रेरक प्रस्तुति,,,

    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
    RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

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  6. प्रेरक!

    जन्माष्टमी की शुभकामनायें!

    कृष्ण जी का आशीर्वाद सदा रहे!!

    जय श्री कृष्ण !!!

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  7. इमरान, वीरू भाई, मनोज जी, सदा जी, धीरेन्द्र जी व रमाकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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