Friday, September 27, 2013

उद्यम ही भैरव है

मार्च २००५ 
‘उद्यमः भैरवः’  पुरुषार्थ के लिए हमें जो प्रयत्न करना है, वही भैरव है. वही शिव है. शुभ कार्यों के लिए किया गया साधन परमात्मा का ही रूप है. हम साधन तो करते हैं पर असाधन  से नहीं बचते. २३ घंटे ५९ मिनट तथा ५९ सेकेण्ड यदि हम साधन करें और एक सेकंड भी असाधन में लग गये तो सारा साधन व्यर्थ हो जाता है. और यदि एक सेकंड ही साधन किया पर शेष समय असाधन न किया तो वह साधन हमारे लिए हितकारी होगा. जप-पूजा करने के बाद भी यदि भीतर शांति का अनुभव नहीं होता तो कमी साधन में नहीं बल्कि कारण हमारा असाधन है. संतजन कहते हैं, यह सम्पूर्ण संसार एक ही सत्ता से बना है. वही ज्ञानी है, वही अज्ञानी है. वही कर्ता है, वही भोक्ता है. हम साक्षी मात्र हैं. जाने-अनजाने सभी उसी ओर जा रहे हैं. वही हमारा मार्ग दर्शक है वही हमारा ध्येय है. यह सारा संसार उसी की लीला के लिए रचा गया है. 

9 comments:

  1. पूरे समय उसका ध्यान रहे ...इक पल को भी वो मन से कर्म से दूर न हो ...यही सकारात्मक भाव के साथ पड़ाव दर पड़ाव जीवन आगे बढ़ता है ......और हम अग्रसर होते हैं प्रभु के समीप .......
    बहुत सुंदर भाव अनीता जी .....

    ReplyDelete
    Replies
    1. अनुपमा जी, आभार..कुछ दिनों के लिए यात्रा पर जा रही हूँ, आकर भेंट होगी.

      Delete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 29/09/2013 को
    क्या बदला?
    - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः25
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


    ReplyDelete
    Replies
    1. दर्शन जी , बहुत बहुत आभार !

      Delete
  3. अरुन जी, स्वागत व आभार !

    ReplyDelete
  4. " उद्योगिनम् पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मी " प्रेरणा-प्रद प्रस्तुति । बधाई !

    ReplyDelete
  5. राजीव जी, सैनी जी, व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !

    ReplyDelete