Sunday, November 17, 2013

नहीं अकेला कोई जग में


यह सत्य है कि हम इस जगत में अकेले ही आते हैं और अकेले ही हमें जाना है. आत्मा स्वयं को जानने के लिए ही मानव शरीर धारण करता है, पर इसे भुलाकर अपने जैसे अन्यों को जीते देखकर सोचता है शायद यही जीवन है. जीवन का अनुभव और सत्संग उसे बताता है कि असलियत क्या है, जहाँ बाहर उसे हर कदम पर द्वन्द्वों का शिकार होना पड़ता है, भीतर जाकर ही उसे पता चलता है कि वह तो निरंतर परमात्मा के साथ जुड़ा है, सभी के भीतर उसी की झलक मिलने लगती है. सभी वास्तव में एक ही शक्ति को भिन्न भिन्न प्रकार से व्यक्त कर रहे हैं. वह सभी के साथ आत्मीयता का अनुभव करता है. प्रेम का जो प्रकाश उसके भीतर फैला था बाहर भी फैलने लगता है. तब उसे संसार से कुछ भी लेने का भाव नहीं रहता वह सहज हो जाता है. प्रेम, विश्वास तथा शांति का स्रोत जो उसे मिल जाता है.

6 comments:

  1. प्रेम, विश्वास तथा शांति का स्रोत जो उसे मिल जाता है.... बिल्‍कुल सही कहा आपने

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  2. बिल्कुल सच कहा है...आभार

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  3. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१९/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।

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  4. " अहम् ब्रह्मास्मि " वह हमारे भीतर भी तो है ।

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  5. सदा जी, वीरू भाई, तथा राजेश जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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