Monday, March 10, 2014

एक वही तो शेष रहेगा

सितम्बर २००५
सद्गुरु कहते हैं, ईश्वर को मन तथा बुद्धि के द्वारा नहीं पाया जा सकता, उसकी कृपा जिस पर होती है, वह ही उसे जान पाता है. यह कृपा कुछ करके नहीं पायी जा सकती, जो शरण में आता है, पूर्ण समर्पित होता है, कृपा उसी पर बरसती है. शरणागति कोई कृत्य नहीं है यह एक भाव स्थिति है. जब साधक को कुछ और नहीं चाहिए केवल एक ही प्यास है, कुछ होने की चाह, कुछ पाने की चाह, कुछ देने की चाह ही हमें अकृत्रिम बनाती है. सभी तरह की कामनाओं से मुक्त होना ही समर्पण है. हम प्रयत्न द्वारा जो भी पाते हैं वह जगत का है और जब सारे प्रयत्न छूट जाते हैं, हम सहज होकर जीते हैं तो जो बचता है वही परमात्मा है. उसके अलावा जो कुछ भी हमारे पास है, वह छूट जाने वाला है, कुछ समय के लिए, खेलने के लिए मिला है.


3 comments:

  1. " सर्व धर्मान् परित्यज्ज मामेकं शरणं व्रज ।"

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  2. सभी तरह की कामनाओं से मुक्त होना ही समर्पण है. हम प्रयत्न द्वारा जो भी पाते हैं वह जगत का है और जब सारे प्रयत्न छूट जाते हैं, हम सहज होकर जीते हैं तो जो बचता है वही परमात्मा है. ..umda..

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