Tuesday, February 24, 2015

दूर भी तू पास भी तू

जनवरी २००८ 
हमें जीवन से जो भी चाहिए वह हमारे पास पहले से ही मौजूद है. जीवन के लिए जो भी चाहिए वह भी हमारे पास है, तो भी हम जीवन से क्या चाहते हैं कि सारी उमर बीत जाती है और हमारी तलाश खत्म नहीं होती. शायद इसलिए कि हमें इस बात का पता ही नहीं है कि जो खजाना हमारे पास है वह हमने गहरे गाड़ दिया है और ऊपर इतनी घास उग आयी है कि अब लगता ही नहीं कभी यहाँ खजाना रहा होगा. सत्संग के औजार से घास हटाने का कम शुरू होता है, झलक मिलने लगती है. भीतर शांति, आनंद व प्रेम का अनुभव होने लगता है, पर मजा तो तब है जब हम इन्हें संसार में बाँट सकें. अनंत खजाना है तो अनंत शक्ति भी होनी चाहिए. अध्यात्म की यात्रा कितनी विचित्र है, यहाँ विरोधाभास ही विरोधाभास है. एक पल में लगता है मंजिल करीब है फिर अगले ही पल लगता है अभी तो चलना शुरू ही किया है.  

3 comments:

  1. सच कहा आपने। प्रेम, शान्ति व आनंद तो बांटने पर ही बढ़ता है।

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  2. कितनी सार्थक सुंदर बात !!

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  3. राहुल जी व अनुपमा जी, स्वागत व आभार !

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