Monday, June 15, 2015

हृदय कोष में ही वह रहता

जनवरी २०१० 
बुद्धि की सीमा जहाँ समाप्त होती है, हृदय का आरम्भ होता है ! लेकिन हम अपनी बुद्धि पर हद से ज्यादा भरोसा करते हैं, हर कोई दूसरे को कम तथा स्वयं को अधिक बुद्धिमान समझता है. छोटी से छोटी बात में भी हम चाहते हैं कि लोग जानें. अहंकार कि जड़ इसी बुद्धि में ही है जो हमें पश्चाताप के सिवा कुछ देकर नहीं जाती. जो यह मान लेता है कि कुछ पा लिया है, जान लिया है उसका ज्ञान चक्षु बंद हो जाता है ! हृदय में प्रवेश होते ही बुद्धि का चश्मा उतर जाता है, तब कोई छोटा-बड़ा नहीं रहता.  

3 comments:

  1. सत्य है पर जानने के बाव्जूद हम इस सत्य को मामने मे संकोच करते है

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  2. जब तक संकोच करते रहेंगे जीवन में थोड़ा न बहुत दुःख रहेगा ही..आभार !

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  3. हृदय में प्रवेश होते ही बुद्धि का चश्मा उतर जाता है, तब कोई छोटा-बड़ा नहीं रहता. - (संग्रह योग्य )

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