८ फरवरी २०१९
आलस्य, प्रमाद और
निद्रा साधक के लिए बाधक हैं. सुबह जल्दी उठना, प्रातः भ्रमण, व्यायाम, योग साधना
आदि नियमित रूप से तभी सम्भव है जब कोई आलस्य पर विजय प्राप्त कर ले. प्रमाद का
अर्थ है भूल को जानकर भी उसे दोहराना, जैसे कोई जानता है कि क्रोध करना बुरा है पर
जरा सी प्रतिकूल परिस्थिति आते ही अथवा थोड़ी सी असुविधा होते ही वह क्रोध कर बैठता
है. आवश्यक निद्रा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है लेकिन रात को देर तक जगना और सुबह
देर तक सोते रहना शरीर व मन दोनों के लिए ठीक नहीं है. प्रकृति के नियमों का पालन करने
से ही हम स्वस्थ रह सकते हैं, स्वस्थ अर्थात स्व में स्थित रह सकते हैं. स्व में
स्थित रहना अर्थात जीवन के साथ एक होकर रहना या मूलभूत मूल्यों को धारण करना. सत्य
और अहिंसा आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं, इन्हें स्व में स्थित होकर सहज ही जीया जा
सकता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 13वीं पुण्यतिथि - अभिनेत्री नादिरा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
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