Monday, February 7, 2022

तेरी है ज़मीं तेरा आसमाँ

परमात्मा ने हमें अनगिनत उपहार दिए हैं। यह सारा जगत, तन, मन तथा बुद्धि उसकी नेमत ही तो हैं। वही प्रकृति के सौंदर्य द्वारा हमें लुभाता है। रंग-रूप और ध्वनि का यह सुंदर आयोजन क्या उसकी लीला नहीं है ? हम उसकी दी हुई नेमतों का उपयोग किस भावना के साथ करते हैं, इसी पर हमारे सुख-दुःख निर्भर हैं। यदि हम कृतज्ञता की भावना के साथ जीवन जीते हैं तो कोई दुःख वहाँ है ही नहीं। हर पल एक अवसर बनकर हमारे सम्मुख आता है, जिसमें हम परमात्मा से दूर या निकट हो सकते हैं। अहंकार बढ़ाने वाली चेष्टा हमें परमात्मा से दूर कर देती है। मन में छाया स्वीकार का भाव हमें अपनी जड़ों को पोषित करने में सहायक है। जगत से सुख और मान पाने की चाह न रहे तो  हम उसके निकट ही हैं। परमात्मा हमारी श्वासों से भी निकट है यदि हम उसके जगत की भूल-भुलैया में इस कदर खो न जाएँ  तो उससे परिचय हो सकता है । हमारा हर मार्ग उसके घर के सामने से गुजरता है पर हम अपनी धुन में न जाने क्या पाने की आशा में आगे बढ़े जाते हैं। हमारी प्रार्थनाएँ यांत्रिक न बनें और प्रेम से संचालित हो तो  हम उसे अपना अंतरंग मित्र बना सकते हैं ।  


1 comment:

  1. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

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