Monday, August 27, 2012

प्रेम गली अति सांकरी


जुलाई २००३ 
चींटी को अगर हिमालय जितना विशाल मिश्री का पहाड़  मिल जाये तो वह उसका कितना अनुभव कर सकती है? उसी तरह उस परमात्मा का बखान हमारी अल्प मति कितना कर सकती है.? वह अनंत है उसे जानने के लिए किये हमारे सारे प्रयत्न विफल हो जाते हैं. उसकी कृपा सदा ही बरस रही है, हमने अहंकार का छाता लगा लिया है जिसके कारण वह हमें छूती ही नहीं. पर जब उसकी कृपा को हम महसूस करते हैं, तब वह हमारे भीतर शक्ति देता है, मोक्ष की इच्छा को जन्म देता है. वह हमारे मन को हर लेता है, वह ज्ञान की कुंजी देता है. उसने हमें अपने समान बनाया है, हमारे भीतर ज्ञान, प्रेम और ऊर्जा का अनंत स्रोत उसने दिया है. नश्वर सम्बन्ध बनाकर हम उस भूले रहते हैं और जीवन समाप्त हो जाता है. रेत की दीवारों पर खड़ा यह जगत हमें सदा खुद से मिलने में बाधा बना रहता है. उसके और खुद के मिलने में कोई अंतर नहीं है. उसके घर का रास्ता खुद से होकर ही जाता है और जब वहाँ से साधक लौटता है तो दो नहीं होते, एक ही रहता है. 

3 comments:

  1. परमात्मा का बखान हमारी अल्प मति कितना कर सकती है.?
    अक्षरश: सही कहा है आपने ... आभार
    http://aatamchintanhamara.blogspot.in/

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  2. क्या सुन्दर बात कही है आपने..

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  3. कहा गया है कि यह गली इतनी संकरी है कि इसमें दो समा ही नहीं सकते।

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