Wednesday, July 24, 2013

वसुधैव कुटुम्बकम

नवम्बर २०१३ 
हमारे समाज में बहुत विषमता है, कुछ सोने के चम्मच से खाते हैं, कुछ के पास भोजन ही नहीं है. इसका एक कारण सामुदायिकता की चेतना का अभाव भी है. यह चेतना कैसे व्यापक हो इसका हल वेदांत के पास है. वेदांत के अनुसार ब्रह्म एक है, सभी के भीतर मूल संस्कार एक से हैं पर इसका भान नहीं है. जब हमें अपने भीतर आत्मा का भास होने लगता है तो दृष्टिकोण विशाल हो जाता है, जीवन शैली बदलने लगती है, व्यवहार बदलने लगता है, सारा समाज, सारा देश, सारा विश्व हमारा परिवार बनने लगता है. साधकों के लिए यह अत्यंत जरूरी है कि व्यक्तिवादी मनोवृत्ति को बढ़ावा न मिले, सभी के भीतर उसी चेतना को देखने का अभ्यास हो.

   

4 comments:

  1. बढ़िया चिंतन और मनन कृपया ब्रह्म और ब्रह्म तत्व पर कुछ आगामी पोस्ट पर लिखें .

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  2. वीरू भाई, जिसे आप शिव बाबा कहते हैं, वही मेरे लिए ब्रह्म या ब्रह्म तत्व है, जो अनंत शक्ति, ज्ञान, प्रेम, सुख का सागर है, जिसे माया छु भी नहीं सकती. जो आत्मा के द्वारा ही अनुभव में आता है, मन, बुद्धि का वह कोई जोर नहीं चलता. जो अपने भीतर के आत्म तत्व को जान लेता है वह यह भी जान लेता है कि सबके भीतर भी ऐसी ही आत्मा है, जिसके गुण ब्रह्म के ही जैसे हैं, अर्थात वास्तव में हर कोई प्रेम, शांति, सुख, आनन्द को अपने भीतर छिपाए है पर माया का पर्दा उसे व्यक्त नहीं होने देता.

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  3. बढ़िया पोस्ट आभार

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