Sunday, September 1, 2013

हर अंतर में वही विराजे

फरवरी २००५ 
जीवन में ज्ञान हो और वह ज्ञान आचरण में भी उतरे तभी शांति का अनुभव हो सकता है ! आनन्द का अनुभव हमें तभी होता है जब भीतर विरोध नहीं रहता. हमारा किसी से विरोध हो अथवा किसी का हमसे विरोध हो, हमारे कारण कोई दुखी हो अथवा हम किसी के कारण दुखी हों, दोनों ही स्थितियों में हम ईश्वर का विरोध करते हैं. हमें जो कुछ भी चाहिए उस परम ने हमारे ही भीतर भर दिया है, हम हृदय का कपाट बंद करके बाहर घूमते रहते हैं. थक-हार कर दुखी होते हैं अपने भीतर बहते हुए शीतल झरने पर नहीं आते, जो प्रेम से, आनन्द से निरंतर बह रहा है. हम उस प्रभु के गीत गाते हैं फिर भी कभी अहंकार, कभी हीनता से ग्रसित हो जाते हैं. जगत के साथ एक्य का अनुभव होने पर दोनों ही विलीन हो जाते हैं.    

9 comments:

  1. बहुत सुंदर विचारों की प्रस्तुति,,,

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  2. Replies
    1. देवेन्द्र जी, यह एक ध्यान से ही मिलता है..

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  3. आनन्द का अनुभव हमें तभी होता है जब भीतर विरोध नहीं रहता.

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  4. यही तो है वह स्थिति -पानी में मीन प्यासी रे। बहुत सुन्दर मोती पिरोये हैं। ईश्वर का वास तो मेरे हृदय में हैं मैं उसे बाहर ढूंढ रहा हूँ।

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  5. दर्शन जी, धीरेन्द्र जी, राहुल जी, वीरू भाई, महेंद्र जी, दिगम्बर जी आप सभी स्वागत व आभार !

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