मार्च २००९
तात्कालिक भय और
असुरक्षा की भावना जब हमें घेर लेती है तो बुद्धि अपना काम करना बंद कर देती है.
हमें लगता है कि हमें खतरा है, जबकि आत्मा को भय हो ही नहीं सकता. पुराने संस्कारों
के कारण अथवा प्रारब्ध के कारण मन भय जगाता है, जो बीज पहले बोये थे उनके फल आने
लगें तो मन विचलित होता है. लेकिन ज्ञान की तलवार से इस वृक्ष को ही काट देना है.
भय के पीछे मोह ही तो है, मोह के पीछे अज्ञान है, अज्ञान ही हमें बाहर की घटनाओं
से प्रभावित करता है, जबकि बाहर की घटनाओं का हमारे मन के विचारों व भावनाओं से
कोई संबंध नहीं है, हम संबंध जोड़ लेते हैं.
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