अप्रैल २००९
जैसे
खरपतवार खेत में बिना किसी प्रयास के अपने आप ही उग जाती है, तथा वह फसल को भी
खराब करती है, वैसे ही मन में व्यर्थ के विचार हमारे सद्विचारों को भी प्रभावित
करते हैं. हमें तो ऐसी खेती भीतर करनी है, जिसमें खर-पतवार जरा भी न हो. अभय,
संतोष, पवित्रता जैसे सद्गुण हों तो ऐसी खेती हो सकती है.
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