जीवन में धन का अभाव हो या किसी भी और बात का, फिर भी उतनी हानि नहीं उठानी पड़ती जितनी हानि तब होती है जब मन में कृतज्ञता का अभाव हो। कृतघ्न व्यक्ति से ख़ुशी ऐसे ही दूर भागती है जैसे सिपाही को देखकर चोर। मानव रूप में जन्म मिला है, तो ईश्वर के प्रति इतनी कृतज्ञता हमारे मन में होनी चाहिए मानो कोई अनमोल ख़ज़ाना मिल गया हो। न जाने कितनी योनियों से गुजर कर हम आये हैं, चट्टान से वनस्पति, कीट, पक्षी, पशु होते हुए मानव का मस्तिष्क मिला है। इसके बाद माता-पिता के प्रति कृतज्ञता का पौधा मन में उगाना चाहिए जो कभी न सूखे, इसके लिए उसमें सदा ही स्नेह व आदर का जल डालते रहना होगा। यदि जीवन में उत्साह और उमंग का आगमन निर्विरोध चाहिए तो अपने परिवार के प्रति, पति-पत्नी और बच्चों के प्रति कृतज्ञता जताने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहिये। अपने शिक्षकों, गुरुजनों, लेखकों, और शासकों के प्रति भी हमें कृतज्ञ होना है। किसानों और व्यापारियों के लिए और समाज के हर उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञ होना है, जिसने हमारे जीवन को सरल और सुंदर बनाने में कोई न कोई योगदान दिया है।
डायरी के पन्नों से
जो पढ़ा, सुना व गुना !
Monday, March 17, 2025
Sunday, October 27, 2024
समग्रता आये जब भीतर
हम देखते हैं कि पदार्थ अचेतन है, चट्टान हिल नहीं सकती, इसमें जीवन नहीं है। जीव जगत अर्धचेतन है, वृक्ष, पशु,पक्षी जीवित हैं, लेकिन उनमें विकसित मन नहीं है।मनुष्य चेतन है, उसमें मन है।मनुष्य में चेतना 'मैं' के विचार के साथ आती है।उसके भीतर चिंतन शुरू होता है, उसका व्यक्तित्व अस्तित्व में आता है। मन और बुद्धि के द्वारा वह अतीत का आकलन करता है, भविष्य की योजनाएँ बनाता है। मन को एक तरह की स्वतंत्रता है, वह सही-ग़लत में चुनाव कर सकता है। मन सीखे हुए ज्ञान पर आधारित रहता है। मन में एक के बाद दूसरा विचार आता रहता है इसलिए वह अहंकार के केंद्र द्वारा कार्य करता है। किंतु चेतना की एक चौथी अवस्था भी है जिसका निर्माण करना मानव के हाथ में है।इससे ही अंतर्दृष्टि का जन्म होता है।अंतर्ज्ञान भीतर से आता है, यह भीतर से विकसित होता है। चेतना के इस गुण को जिसे ध्यान, अंतर्ज्ञान, अंतर्दृष्टि, कालातीत होना कहा जाता है; वर्तमान भी कह सकते हैं। यह वह वर्तमान है जिसमें अतीत और भविष्य दोनों विलीन हो गए हैं।बुद्ध इसे ही निर्वाण कहते हैं, हिंदू और जैन इसे मोक्ष कहते हैं। जिसे पतंजलि तुरीय कहते हैं अर्थात 'चौथा'। यह अवस्था ध्यान के निरंतर अभ्यास से प्राप्त होती है। ध्यान हमारी सजगता बढ़ाने में सहायक है। यदि कोई पल-पल सचेत रहने की कला सीख जाता है तो उसे दिन-प्रतिदिन के कार्यों में अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं होती। वह तत्क्षण सही निर्णय ले पाने में सक्षम होता है। उसके भीतर एक अंतर्दृष्टि काम करने लगती है।जिसने कभी ध्यान न किया हो ऐसे व्यक्ति के लिए भी किसी ख़तरे के समय सोचने का समय नहीं होता, तुरंत निर्णय लेना है, यदि कोई सजग नहीं है तो दुर्घटना हो सकती है। किसी जाग्रत व्यक्ति के लिए यह उनका सामान्य ढंग है, वह चेतना की समग्रता से जीता है।
Tuesday, June 4, 2024
यह दिल दीवाना है
वर्तमान युग में मानसिक अवसाद और तनाव के मामले बहुत बढ़ रहे हैं। यदि गहराई से देखें तो मन के सारे तनाव का मूल स्रोत व्यक्ति का असंतोष है। एक व्यक्ति सदा कुछ न कुछ और बनने की कोशिश करता रहता है। वह स्वयं जैसा है उसे स्वीकार नहीं करता, इसी कारण वह दूसरे के अस्तित्व को भी नकारता है।उसका मन सदा किसी आदर्श स्थिति को पाने की कल्पना करता है। इसलिए तनाव सदा इस बात के कारण होता है कि वास्तव में वह क्या है और क्या बनना चाहता है।व्यक्ति के पास जो आज है, वह उससे क़तई खुश नहीं है और वह पाना चाहता है, जो नहीं है। मन का स्वभाव ही द्वंद्वात्मक है, मन स्वयं का विरोधी है।किसी भी बिंदु पर अपने स्वभाव के कारण मन एकमत नहीं होता। यह हमेशा बंटा हुआ होता है। अगर व्यक्ति मन की बात मानकर एक काम करता है तो मन का दूसरा हिस्सा कहता है, यह काम सही नहीं था। अगर वह इस हिस्से की बात सुने, तो दूसरा हिस्सा कहता है, यह अस्थिरता ठीक नहीं है। मन न इस तरफ रहने देता है, न ही उस तरफ। व्यक्ति अपने भीतर सदा एक सवाल का सामना करता है, और उसकी सारी शक्ति अपने भीतर के इस तनाव से स्वयं को बचाने में ही खर्च होती रहती है ।इस तनाव से बचाने का उपाय है, व्यक्ति स्वयं को जैसा वह है, पूर्ण रूप से स्वीकार करे। जब कोई ख़ुद को स्वीकारता है तभी दूसरों को भी, जैसे वे हैं, स्वीकार सकता है। इससे उसके भीतर बहुत सी ऊर्जा बच जाती है, जिसका उपयोग वह अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए कर सकता है।
Saturday, June 1, 2024
भारत को आगे बढ़ना है
आज चुनाव का अंतिम दिन है, फिर प्रतीक्षा होगी परिणाम की। एक तरह से यह तय है कि अगली सरकार किसकी बनने वाली है। भारत जैसे महान और विशाल देश की सरकार भी मज़बूत व स्थिर होनी चाहिए। देश को आगे ले जाने में जितना हाथ सरकार का होता है, उतना ही नागरिकों का भी है, वे यदि अपने कर्त्तव्यों का पालन करेंगे तभी उनके अधिकारों की रक्षा हो पाएगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि संविधान ने हमें अधिकारों के साथ कुछ कर्त्तव्य भी दिये हैं। देश में समस्याएँ अनेक हैं, लेकिन सबसे बड़ी जो समस्या है, वह भ्रष्टाचार की है। जो भी सदाचरण नहीं करता, वह दुराचरण कर रहा है, अर्थात उसका आचरण भ्रष्ट है। आज फ़ेक न्यूज़ का जमाना है, साइबर अपराध बढ़ रहे हैं। इनके लिए भी कड़ा क़ानून बनाना चाहिए। टीवी पर या सोशल मीडिया में जिस किसी को कोई भी झूठ फैलाने का अधिकार नहीं होना चाहिए। अदालतों में झूठी गवाही देने वालों पर भी कदम उठाया जाना चाहिए। सड़कों पर गंदगी फैलाने वाले, पेड़ काटने वाले, जल व विद्युत का अपव्यय करने वाले लोगों पर भी कार्यवाही होनी चाहिए। आने वाली सरकार देश की उम्मीदों पर कितनी खड़ी उतरती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन देश के नेताओं को अब अगले पाँच वर्षों के लिए दलगत राजनीति से दूर रहकर भारत को आगे ले जाना का कार्य करना चाहिए।
Thursday, May 30, 2024
जीवन में जब लय आती है
मध्य मार्ग में चलना होगा
जो प्रसन्नता किसी बाहरी वस्तु पर आधारित नहीं है, उसमें कोई उत्तेजना नहीं है। यह मौन से उपजी है। इसमें मन शांत हो जाता है। यहाँ कुछ भी विशेष नहीं घटता है। यहाँ अहंकार छूट गया है। ऐसी मनोदशा में न ही निराशा है ना आशा, न सुख न दुख। यह वास्तविक मुस्कान है, जिसमें आँसुओं की गहराई भी छिपी है।क्योंकि विपरीत मध्य में एक हो जाते हैं। यदि हम सुख की तलाश करते हैं, तो दुख पीछे आने ही वाला है। यदि शांति, स्थिरता, मौन की तलाश करते हैं, तो भीतर एक स्थिरता का अनुभव होगा। ध्यान में यही घटता है । पल-पल सहजता से आगे बढ़कर उस मौन को पकड़ना है। इसे पोषित करके, इसकी रक्षा करनी है। संतोष का यही अर्थ है, जो कुछ भी है, वह अच्छा है। कोई जहाँ भी है, वह जब कृतज्ञता अनुभव करता है, तब भीतर जो प्रार्थना घटित होती है, वह तत्क्षण फलित होती है।
Monday, May 20, 2024
बुल्ला ! की जाना मैं कौन
अधिकतर लोग यह मानते हैं कि बाहर से जीवन में कोई कमी न दिखाई देते हुए भी उनके दिल में इक खुदबुद सी लगी रहती है। कोई व्यक्ति वास्तव में चाहता क्या है, उसे इसकी खबर भी नहीं होती।संभवत: हर किसी की तलाश एक ऐसी शांति या सुकून की है, जो सदा-सदा के लिए भीतर का ख़ालीपन भर दे।वस्तुओं से बाज़ार भरा पड़ा है, किंतु वहाँ ऐसा कुछ नहीं मिल सकता जो इस अभाव को भर दे। इस तरह जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, यह बेचैनी दिनबदिन बढ़ती जाती है । एक दिन यही किसी न किसी रोग के रूप में प्रकट होती है।बेचैनी ज्यों ज्यों बढ़ती है, मन का सुकून घटता जाता है कोई इसे परिवार, मित्रों या चिकित्सक से बयान करता है, कोई इसके बारे में कुछ नहीं बताता। स्वयं ही ही मुक्त होने का उपाय खोजता है, किंतु वह यह भूल जाता है कि जिस मन ने इसे खड़ा किया है, वही मन इससे मुक्ति का उपाय कैसे बता सकता है।जो इसे दूर करे, वह दवाई कहीं बाहर नहीं मिलती। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है, गुरु की शरण में जाना चाहिए, सत्संग करना चाहिए। गुरु और शास्त्र बताते हैं कि मन की तलाश अपने भीतर जाकर ही मिट सकती है। स्वयं से दूरी ही मानव को बेचैन करती है। जब तक कोई अपने होने को वास्तव में अनुभव नहीं कर लेता, बाहर के सुख और सुविधाएँ उसे वह शांति प्रदान नहीं कर सकते, जो वह चाहता है।