Monday, July 22, 2013

तन्द्रा त्याग जागरण मांगें

नवम्बर २००४ 
सामंजस्य की साधना करने के लिए शरीर का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है. शरीर का यदि पूरा ज्ञान हो और शरीर के अंगों पर ध्यान किया जाये तो अपने आप ही सामंजस्य की भावना भीतर आने लगती है. शरीर के विभिन्न अंग मिलजुल कर मस्तिष्क की सहायता से काम करते हैं, उसी प्रकार हम समाज में तथा परिवार में रह सकते हैं, सबसे जरूरी है हमारा अपने साथ सम्बन्ध, हमारे मन का आत्मा के साथ सम्बन्ध, फिर हमारा अपने निकटवर्ती जनों के साथ सम्बन्ध. जब हमारे शरीर की शक्ति का बोध हो जाता है तो प्रमाद, जड़ता तथा आलस्य नहीं रहता, भीतर एक स्फूर्ति का उदय होता है, वह स्फूर्ति हमारे सम्बन्धों में झलक उठती है, तब मन हर क्षण नया-नया सा रहता है, सम्बन्धों में बासीपन नहीं आता, कोई दुराग्रह नहीं रहता, मन तब एक अनोखी स्वतन्त्रता का अनुभव करता है, मन की ऐसी स्थिति कितनी अद्भुत है, कहीं कोई उहापोह नहीं, विरोध नहीं, कोई अपेक्षा नहीं, बिना किसी प्रतिकार, अपेक्षा के द्रष्टा भाव में जीना आ जाता है.

6 comments:

  1. ॐ शान्ति

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

    पुरुष और प्रकृति बोले तो आत्मा और शरीर में मालिक और दास का सम्बन्ध रहे .शरीर(प्रकृति ) तो सर्वर है आत्मा (पुरुष )का .

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  2. जब हमारे शरीर की शक्ति का बोध हो जाता है तो प्रमाद, जड़ता तथा आलस्य नहीं रहता, भीतर एक स्फूर्ति का उदय होता है, वह स्फूर्ति हमारे सम्बन्धों में झलक उठती है, तब मन हर क्षण नया-नया सा रहता है....
    ati sundar...

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  3. बढिया, सार्थक संदेश


    मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
    "आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
    http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
    और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
    http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

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  4. सरिता जी, वीरू भाई, महेंद्र जी व राहुल जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. मन को साधना सबसे मुश्किल.जिसने इसे जीत लिया,समझो कि जग जीत लिया

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  6. बढिया, सार्थक संदेश

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