Friday, July 11, 2014

बिन पुरुषार्थ सफल नहीं कोई

सितम्बर २००६ 
जब शरीर में पानी का स्तर कम हो जाता है तो हमें प्यास लगती है. जब मन में आनंद का स्तर कम हो जाता है तब ज्ञान की जरूरत होती है. ज्ञान हमें बताता है कि हम शुद्ध आत्मा हैं. शुद्धता शांति और सुख की जननी है. जहाँ ये चारों हैं, वहाँ प्रेम आता है, जिसके पीछे-पीछे शक्ति आ जाती है और इन सबके होने पर हमें पता चलता है कि हम आनन्द स्वरूप हैं. जब इतने सारे सद्गुण हमारे भीतर विद्यमान हैं तो हमें कमी का अहसास क्यों होता है, क्योंकि हम अपने को पहचानते नहीं, इन्हें पाने के लिए हमें वैसे ही पुरुषार्थ करना पड़ेगा जैसे भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए करते हैं. 

3 comments:

  1. हाँ! सत +चित+आनंद -सच्चिदानंद ही हैं हम। अमरत्व की ज्ञान की आनंद की असीम प्यास लिए बुनियादी स्वभाव ही हमारा सच्चिदानंद हैं। सुन्दर पोस्ट।

    सत माने अस्तित्व (exhistance), चित (ज्ञान)बोले तो कालिज और आनंद अपरिमित लिमिटलैस आनंद। यही तो हम हैं। इसीलिए अमर होना चाहते हैं ज्ञान की भूख लिए रहते हैं आनंद की कामना रहती है हमारे हर एक्शन में कर्म में भले वह दुष्कर्म हो।

    ReplyDelete
  2. चाहे हम भौतिक प्रगति चाहें अथवा आध्यात्मिक , पुरुषार्थ आवश्यक है ।

    ReplyDelete
  3. वीरू भाई व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

    ReplyDelete