Thursday, July 17, 2014

ज्ञानमयी वह प्रेम मयी है

अक्तूबर २००६ 
हमारे भीतर की दिव्यता को जगाने के लिए हमें बहुत ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि सच्चाई से उसे एक बार पुकारने की आवश्यकता है. महत् एक तत्व है जो परमाणु से परे है, सूक्ष्म से परे है, हमारे भीतर भी महत् है, जहाँ प्रभु का वास है. हम उसे भुला देते हैं, भयभीत रहते हैं. इस भय के कारण ही जीवन में समझौते करते चले जाते हैं. इस जगत में प्रेम नामक वस्तु का भ्रम ही तो है, उसे हम महसूस कहाँ कर पाए हैं, उसकी छाया भर हमें मिलती है और उसे सच मानकर हम छले जाते हैं. प्रेम तो हमारा निजस्वरूप है और उससे हमारा मिलन अभी हुआ नहीं है. आत्मा ऊर्जावान है, प्रेममयी है, आनन्दमयी है, शक्तिशाली है, फिर हमें भयभीत होकर रहने की क्या आवश्यकता है. निर्भयता वह पहला गुण है जो धर्म के मार्ग पर चलने वाले साधक को मिलता है. किसी भी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से भयभीत न होना, दुखों से भी नहीं, दुःख तो हमें मांजते हैं, दुखों से दोस्ती करनी होगी और सुख की आशा का त्याग करना होगा. 

2 comments:

  1. उपासना जी, स्वागत व आभार !

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