Sunday, July 6, 2014

एक डोर बांधे है सबको

सितम्बर २००६ 
लक्ष्य का चुनाव, एकाग्रता, तादात्म्य तथा अंत में गुणों का अपने भीतर संक्रमण यह साधना का क्रम है. साधक का लक्ष्य तो भाव शुद्धि, वाणी शुद्धि, तथा कर्म शुद्धि का ही हो सकता है. ये तीनो बातें सद्गुरु में अथवा इष्टदेव में हैं. उसके साथ तादात्म्य हो जाये तो उसके गुण अपने आप भीतर प्रवेश करने लगेंगे. जो चेतना हमारे भीतर है वही उनके भीतर है, उन्हें उसका ज्ञान है हम चाहे इससे अनभिज्ञ हों. वही चेतना हरेक के भीतर है, सभी एक-दूसरे पर आश्रित हैं, इसका बोध हमें भी करना है. स्वयं को सारी सृष्टि से पृथक मानना ही अहंकार है, जो सारे दुखों का कारण है.

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