Tuesday, July 8, 2014

वही साँवरा संवारे मन को

सितम्बर २००६ 
ध्यान से पूर्व यदि कोई संकल्प करें तो ध्यान उसे पूर्ण करने की सामर्थ्य देता है. असम्भव कार्य तो मन को शांत करना ही है, ध्यान इसे भी सम्भव बना देता है. जो सहज प्राप्य है, हमारे भीतर है, जो हमसे जुड़ा है, जो है तो हम हैं, हमें उसी का ज्ञान नहीं है, वह कौन है ? जब तक हम संसार से सुख पाने की कामना भीतर संजोये रहेंगे तब तक उसका मिलना नहीं होगा. ध्यान हमें भीतर का सुख देता है, भीतर के द्वार पर खटखटाना सिखाता है, भीतर एक अमृत का घट  भरा है जिस पर मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के चार पर्दे पड़े हैं, ध्यान उन्हें हटाता है और हम उस अमृत का पान करने में सफल होते हैं. न जाने कितने जन्मों की कितनी गांठें हमने अपने भीतर बाँध रखी हैं, कितने दुःख कितने भय और दर्द भीतर दबे पड़े हैं. ध्यान उन्हें निकाल के अंतःकरण स्वच्छ करता है. जैसे कोई पार्लर में जाये और नया व सुंदर होकर बाहर निकले वैसे ही हमारे मन को सुंदर बनाने का कार्य ध्यान करता है. सहज होकर परम को समर्पित होकर जब हम बैठते हैं तो वह अपना काम सुगमता से कर पायेगा. केश बनाने वाला सिर को चाहे जैसा घुमाये हम कहाँ दखल देते हैं, परमात्मा हमारे मन का ब्युटीशियन है, पूरा खाली होकर नम्र भाव से जब अपना मन उनके हवाले कर देते हैं चाहे वह उसे मोड़े, घुमाये, और फिर हम जब ध्यान से बाहर आयेंगे तो मन आत्मा के दर्पण में चमचम करता हुआ दिखेगा, हम शायद स्वयं ही उसे न पहचान सकें !  

4 comments:

  1. बढिया,बहुत सुंदर

    रेल बजट में नहीं दिखा 56 इँच का सीना !
    http://aadhasachonline.blogspot.in/

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  2. अपने आप को प्रभु को समर्पित कर देना ही सबसे बड़ी भक्ति है...

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  3. बहुत खूब प्रतीक रचा है रचना ने रचियता का।

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  4. महेंद्र जी, कैलाश जी व वीरू भाई, आप सभी का स्वागत व आभार !

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