Wednesday, July 9, 2014

तेरा तुझको अर्पण

सितम्बर २००६ 
संतजन कहते हैं परमात्मा को अपना प्रेम अर्पित करो तो कृपा रूप में वही वापस मिलेगा. प्रसाद भी वही होता है जो प्रभु के चरणों में अर्पित करके वापस मिलता है. जो हम देते हैं उससे कई गुणा लौटा कर वह हमें देते हैं. परमात्मा का बखान करना सूर्य को दीप दिखाने जैसा ही है फिर भी हृदय चाहता है कि वाणी उसका बखान करे, आँखें चाहती हैं कि आँसू उनका बखान करें और मन चाहता है कि भाव उसका अनुभव कर शब्दों के माध्यम से उसकी सुगंध दूर-दूर तक फैलाएं ! ‘रसो वैः सा’ वह परमात्मा रस पूर्ण है, पर उसका स्वाद तो उसकी अनुभूति होने पर ही मिल सकता है. एक न एक दिन तो सभी को उस पथ का राही बनना है.

2 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.07.2014) को "कन्या-भ्रूण हत्या " (चर्चा अंक-1671)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. बहुत बहुत आभार !

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