Wednesday, May 27, 2015

निंदक नियरे राखिये

अप्रैल २००९ 
जिसने एक को अपना बना लिया है, जिसके लिए यह सारा जगत अपना हो गया है, वह भक्त है. प्रेम और भरोसे के मिश्रण से भावना बनती है और जहाँ यह भावना टिक जाती है, वही भक्त है. परमात्मा पर भरोसा और परमात्मा से प्रेम हो और निंदा में जिसकी रूचि न हो, वह भक्त है. बात को घटाकर बोलना निंदा है, बढ़ाकर बोलना खुशामद है. हम ज्यादातर अधूरा सत्य बोलते हैं, या तो घटाकर या बढ़ाकर. हम दूसरों की निंदा सुनकर और अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होते हैं, जो अपनी निंदा सुनकर और दूसरों की प्रशंसा सुनकर खुश हो वही भक्त है. निंदा सदा अपने से ज्यादा आगे रहने वाले की होती है. निंदा सुनके यदि कोई दुखी हो तो स्पष्ट है की उसमें यह बुराइयाँ थीं, वरना दुखी होने का कोई भी तो कारण नहीं है. बुरे को बुरा कहना निंदा नहीं है, अच्छे को बुरा कहना निंदा है. निंदक को पाकर भक्त कहता है यह हमारे मैले कपड़े धोता है, मन की चादर को रसना से धोता है.  

6 comments:

  1. आपके ब्लाग को पढ़ा और बुक्मार्क भी कर लिया ,खासकर विपसना वाले लेख पढ़े और बहुत अच्छा लगा। मैं भी कुछ इसी तरह के विचारों से गुज़रा हूँ और गुज़र रहा हूँ।
    धनयवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत व आभार सतपाल जी..

      Delete
  2. मेरा मानना थोड़ा उल्टा है, निंदक को नजदीक रखना चाहिए लेकिन उतना ही जितना व्यावहारिक हो... चारो तरफ निंदा करने वाले हों तो इंसान कभी कभी निगेटिव एनर्जी से भर जाता है....

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका मानना भी ठीक है..निंदा सहने की ताकत हरेक में नहीं होती, यहाँ बात भक्त की हो रही है

      Delete
  3. दूसरों की निंदा से अपने पुण्यों का क्षय होता है । आपने बिल्कुल सही बात कही है । हमें सदैव शुभ - चिन्तन ही करना चाहिए ।

    ReplyDelete
  4. स्वागत व आभार शकुंतला जी

    ReplyDelete