वह परम चैतन्य जो इस
सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता है, जो ऋत है, नियम है, आनन्दमय है, नित है, ज्ञानमय
है. सब प्राणियों को जानने वाला है. वह अगोचर है पर उसी के द्वारा देखा जाता है,
उसी के द्वारा सुना जाता है, वह ईश्वर हर आत्मा को अपनी ओर उन्मुख करना चाहता है,
कभी सुख कभी दुःख के द्वारा वह हमें सजग करता है. उसके प्रति जागरूक होना ही साधना
का फल है.
बहुत बहुत आभार राजेन्द्र जी !
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित चिंतन...
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ReplyDeleteसाधक कर सकता है साधना
असंभव नही थोड़ा सा मुश्किल है ।
कैलाश जी व सुशील जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसार्थक संदेश.
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