१९ जुलाई २०१६
सद्गुरु कहते हैं जीवन गुरूतत्व से सदा ही घिरा है. गुरु ज्ञान का ही
दूसरा नाम है. अपने जीवन पर प्रकाश डालकर हमें ज्ञान का सम्मान करना है, अर्थात सही-गलत
का भेद जानकर जीवन में आने वाले दुखों से सीखकर ज्ञान को धारण करना है, ताकि पुनः
वे दुःख न झेलने पड़ें. मन ही माया को रचता है और अपने बनाये हुए लेंस से दुनिया को
देखता है. साधक वह है जो कोई आग्रह नहीं रखता न ही प्रदर्शन करता है. देने वाला
दिए जा रहा है, झोली भरती ही जाती है. हमें वाणी का वरदान भी मिला है और मेधा भी
बांटी है उसने. यदि उसे सेवा में लगायें जीवन तब सार्थक होता जाता है. भक्ति और
कृतज्ञता के भाव पुष्प जब भीतर खिलते हैं, मन चन्द्रमा सा खिल जाता है, गुरु
पूर्णिमा तब मनती है.
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