Thursday, July 7, 2016

भक्ति करे कोई सूरमा

७ जुलाई २०१६  
तेरी बज्म तक तो आऊँ, जो यह आना रास आए
यह सुना है जो भी लौटे, वे उदास आए !


गुरु की दृष्टि, उसकी वाणी, उसका स्पर्श और उसका चिन्तन भी साधक के भीतर जागृति ले आता है. तब एक भिन्न तरह की उदासी उसे घेर लेती है, जो अब इस दुनिया में उसे चैन नहीं लेने देती. वह भी प्रेम के पंख लगाकर अनंत गगन में उड़ान भरना चाहता है. भक्ति मार्ग सहज भी है और कठिन भी. ‘प्यार सभी का काम नहीं, आंसू सबका आम नहीं’ ! सद्गुरु की उदारता ही परमात्मा की कृपा करवाती है, साधक की पात्रता नहीं. 

2 comments:

  1. बहुत सार्थक चिंतन...आभार

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  2. स्वागत व आभार कैलाश जी !

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