जनवरी २००३
“जिसको देना चाहता है, उसी को आजमाता है, खजाने रहमत के वह इसी तरह लुटाता है”...ज्ञान शक्ति को बढ़ाने के लिये इच्छा शक्ति को घटाना होगा. ज्ञान शक्ति से ही क्रिया शक्ति जागृत होगी. आत्म चेतना में यह तीनों शक्तियाँ हैं जिनसे हमें सुख प्राप्त होता है. जो साधक ऊँचाईयों तक जाना चाहता है, अपने भीतर के खजाने को पाना चाहता है, उसे अपना समय और ऊर्जा सम्भल कर खर्च करनी होगी. तेज, बल व ओज बढ़े इसके लिये ऊर्जा व्यर्थ न हो. अनुशासन हमें मुक्त करता है और जिसे मुक्ति नहीं चाहिए उसे भक्ति प्रदान करता है. सुबह-सुबह कुछ देर की साधना व सत्संग हमें सात्विकता की ओर ले जातें है जैसे-जैसे दिन बीतता जाता है रजो गुण व तमो गुण अपनी लपेट में ले लेते हैं. सर्व काल में स्मरण बना रहे, कृपा का अनुभव होता रहे, कृतज्ञता का भाव मन में रहे तब ही मानना होगा कि हम साधना के पथ पर हैं. ईश्वर हर क्षण अपनी ओर पुकारते हैं और हमें ठोकर तभी लगती है जिस क्षण हम उससे अलग होते हैं.
बहुत सच कहा है..ईश्वर हमें हर क्षण अपनी ओर पुकारते हैं, लेकिन हम माया मोह में फंसे उनकी आवाज़ नहीं सुनते...आभार
ReplyDeleteईश्वर हर क्षण अपनी ओर पुकारते हैं और हमें ठोकर तभी लगती है जिस क्षण हम उससे अलग होते हैं.
ReplyDeleteसुन्दर विचार सरणी .
“जिसको देना चाहता है,
ReplyDeleteउसी को आजमाता है,
खजाने रहमत के वह इसी तरह लुटाता है”
SUNDAR BHAW.
“जिसको देना चाहता है, उसी को आजमाता है, खजाने रहमत के वह इसी तरह लुटाता है”.
ReplyDeleteऔर जो उस 'खजाने ' को दूसरों तक पहुचाते हैं ..उनमे भी कही न कही वो विद्यमान होता है ..
kalamdaan.blogspot.in