श्रद्धावान लभते ज्ञानं ! ईश्वर में, सत्य में, शुभ में, श्रद्धा हो तो वह सदा वर्तमान है. हमारे निकट है. साधना में उससे अभिन्नता का अनुभव हमारे मन को फूल सा खिला देता है. हमारे आसपास भी धीरे-धीरे परिवर्तन शुरू हो जाता है. वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है जब हम अपने भीतर के आनंद को पा लेते हैं., स्वयं की प्रसन्नता के लिये जगत के मोहताज नहीं रहते, पूर्ण मुक्त हो जाते हैं. एकांत में रहने से जो भय भीत नहीं है, मनसा. वाचा, कर्मणा जो सदमार्ग पर स्थित है. अपने सुख-दुःख के लिये जो स्वयं उत्तरदायी है वही साधना के पथ पर आगे बढ़ सकता है.
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय...... शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteईश्वर में, सत्य में, शुभ में, श्रद्धा
ReplyDeleteEK EK SHABD APANE AAP MEN
SHATYAM SHIWAM SUNDARAM KO ABHIWYAKT KARATA.
उत्तम विचार!
ReplyDeleteआप सभी का आभार व स्वागत !
ReplyDeleteanmol vichar
ReplyDeleteमोनिका जी, स्वागत व आभार!
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