जनवरी २००३
यह दुनिया स्वप्न की नाईं है यहाँ कुछ भी सत्य नहीं है, सत्य मात्र एक वही द्रष्टा है, हमें उसी का चिंतन करना है, जन्म और मृत्यु शाश्वत सत्य हैं, इस संसार के रास्ते पर जो भी हमें दिख रहा है वह सब बदलने वाला है, सब कुछ प्रतिपल बदल रहा है. जिसका भी जानना होता है वह विनाश को प्राप्त होगा ही. जिसका भी जन्म होगा वह मरेगा ही. सभी कुछ काल के अधीन है. जाने-अनजाने सब उसी एक सत्य की खोज में हैं, कोई पहली सीढ़ी पर कोई पाँचवी तो कोई सौवीं पर पहुँच गया है. आसक्तियों की रस्सियाँ हमें इधर-उधर खींचती रहती हैं, हम पुनः इस मरणशील जग के पीछे ही चल पड़ते हैं. दम्भ को अपना लेते हैं, वाणी का संयम भूल जाते हैं, संदेह के बादल छा जाते हैं. लेकिन जब हृदय में भक्ति का प्रकाश होता है, तन-मन फूल की तरह हल्के हो जाते हैं. सब कुछ स्पष्ट हो जाता है. अंतर सौम्यता से भर जाता है. हमारी चेतना पवित्र है क्योंकि वह परमात्मा से जुड़ी है.
भक्तिमय ...ज्ञानवर्धक आलेख ..!!
ReplyDeleteलेकिन जब हृदय में भक्ति का प्रकाश होता है, तन-मन फूल की तरह हल्के हो जाते हैं. सब कुछ स्पष्ट हो जाता है. अंतर सौम्यता से भर जाता है. हमारी चेतना पवित्र है क्योंकि वह परमात्मा से जुड़ी है.....bahut achche vichar hain prernadaai post.aabhar
ReplyDeleteदम्भ को अपना लेते हैं, वाणी का संयम भूल जाते हैं,
ReplyDeleteबहुत खूब सटीक लेख
अनुपमा जी, राजेश जी, और राजपूत जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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