जनवरी २००३
भक्त परमात्मा की उपस्थिति को अपने भीतर-बाहर हर जगह महसूस करता है. जब हम भीतर बाहर एक से होते हैं तभी उसे अनुभव कर पाते हैं. जब हम तृष्णा से बंधे नहीं होते, सब कुछ हो रहा है, ऐसा जानते हैं, तभी उसको जान सकते हैं. उसको जानने के लिये उसके जैसा तो होना ही पड़ेगा. परमात्मा ही गुरु बनकर हमें ज्ञान देता है उसके प्रति कृतज्ञता का भाव बने, सबमें उसे देखना आ जाये तो अहंकार व आसक्ति से हम बच जाते हैं. मन के संशय भी मिट जाते हैं. जन्म-मरण की पटरियां ही तो हमने पार करनी हैं फिर मन में इतना ताना-बाना बुनने की क्या आवश्यकता है, एक उसी का आश्रय पर्याप्त है. नाव पानी में रहे तब तो ठीक है पानी नाव में आ जाये तो वह डूब जाती है.
बहुत उत्तम!!
ReplyDeleteनाव पानी में रहे तब तो ठीक है पानी नाव में आ जाये तो वह डूब जाती है.
ReplyDeleteUTTAM WICHAR.
सुंदर दर्शन।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteरमाकांत जी, देवेन्द्र जी, व प्रसन्न वदन जी व समीर जी आप सभी का आभार व स्वागत !
ReplyDeleteआखिरी पंक्ति में सम्पूर्णता उकेरी है आपने ..
ReplyDeleteअति सुन्दर विचार
kalamdaan.blogspot.in