Friday, March 16, 2012

हर जगह बस वही तो है


जनवरी २००३ 
भक्त परमात्मा की उपस्थिति को अपने भीतर-बाहर हर जगह महसूस करता है. जब हम भीतर बाहर एक से होते हैं तभी उसे अनुभव कर पाते हैं. जब हम तृष्णा से बंधे नहीं होते, सब कुछ हो रहा है, ऐसा जानते हैं, तभी उसको जान सकते हैं. उसको जानने के लिये उसके जैसा तो होना ही पड़ेगा. परमात्मा ही गुरु बनकर हमें ज्ञान देता है उसके प्रति कृतज्ञता का भाव बने, सबमें उसे देखना आ जाये तो अहंकार व आसक्ति से हम बच जाते हैं. मन के संशय भी मिट जाते हैं. जन्म-मरण की पटरियां ही तो हमने पार करनी हैं फिर मन में इतना ताना-बाना बुनने की क्या आवश्यकता है, एक उसी का आश्रय पर्याप्त है. नाव पानी में रहे तब तो ठीक है पानी नाव में आ जाये तो वह डूब जाती है. 

6 comments:

  1. नाव पानी में रहे तब तो ठीक है पानी नाव में आ जाये तो वह डूब जाती है.
    UTTAM WICHAR.

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  2. सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...

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  3. रमाकांत जी, देवेन्द्र जी, व प्रसन्न वदन जी व समीर जी आप सभी का आभार व स्वागत !

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  4. आखिरी पंक्ति में सम्पूर्णता उकेरी है आपने ..
    अति सुन्दर विचार
    kalamdaan.blogspot.in

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