Sunday, March 18, 2012

मृत्यु से भय कैसा


जनवरी २००३ 
मृत्यु के बाद व्यक्ति कहाँ जाता है कोई नहीं जानता.. आत्मा शाश्वत है, वह किसी नई देह को धारण कर लेती होगी और संभवतः इस जन्म की बातें शीघ्र ही भूल भी जाती होगी. हम जन्म के पूर्व अव्यक्त रहते हैं, मृत्यु के बाद भी अव्यक्त हो जाते हैं, मध्य में कुछ ही समय हम व्यक्त होते हैं, इस क्षणिक जीवन में जितने-जितने हम शुद्ध होते जाते हैं, उतना ही मृत्यु का भय कम होता जाता है. अपने उस स्वरूप का अनुभव हमें इसी रूप में होने लगता है, जो रूप हम मृत्यु के बाद अनुभव करने वाले हैं. तन व मन से परे, बुद्धि, चित्त, अहंकार से भी परे हमारा शाश्वत प्रेममय, ज्ञानमय, और आनन्दमय रूप है जो सत्य है और सनातन है. यह रूप तो हमें अपनी पूर्वजन्म की इच्छाओं और वासनाओं के कारण मिला है. हमारे कर्म यदि इस जन्म में निष्काम हों और वासनाएं न रहें तो आपने शुद्धतम रूप में हम प्रकट हो सकते हैं. वैसे भी इस जगत में ऐसा है भी क्या जो हमें तुष्ट कर सके.

6 comments:

  1. वैसे भी इस जगत में ऐसा है भी क्या जो हमें तुष्ट कर सके.

    .....बहुत सच कहा है...फ़िर मृत्यु का भय क्यों?

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  2. आत्मा शाश्वत है,
    atal satya.
    PRANAM SWIKAREN

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  3. सच से क्या भय ..

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  4. वैसे भी इस जगत में ऐसा है भी क्या जो हमें तुष्ट कर सके. TRUE.

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  5. संगीता जी, रमाकांत जी, ऋतु जी, भावना जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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