जनवरी २००३
हमें यह सुंदर जीवन भोग के कारण दुःख उठाने के लिये नहीं मिला है, बल्कि योग के द्वारा अनंत शांति, प्रेम व आनंद को पाने के लिये मिला है. देवों और असुरों की तरह हमारा मन व आत्मा दोनों ही परमात्मा के हैं, असुर भी कोई कम शक्तिशाली तो थे नहीं, देवताओं को हरा देते थे, वैसे ही मन के प्रभाव में आकर हम विकारों के गुलाम बनते हैं, तृष्णाओं की आग में स्वयं को जलाते हैं. अब कंस और रावण के मार्ग पर चल कर कोई आनंद कैसे पा सकता है. फिर यह सोच कर खुद पर क्रोध भी आता है कि जीवन का अनमोल समय व्यर्थ बीता जा रहा है, सुख आज भी दूर है. मन के मार्ग पर चलेंगे तो अंत में सिवाय दुःख व बेचैनी के कुछ हाथ आने वाला नहीं है. तो मार्ग क्या है, यही कि मन को पहचान लें और जितनी जल्दी हो सके आत्मा के पथ के राही बन जाएँ, आरम्भ में सब अनजाना भले ही लगे पर अंत में परमात्मा ही मिलेंगे अर्थात आनंद, प्रेम, शांति, शक्ति, सुख, ज्ञान व पवित्रता...!
सुंदर बात ..!!
ReplyDeleteआभार ..!
अनुपमा जी, स्वागत है...
Deleteबात तो बढ़िया है.याद रहनी चाहिए.
ReplyDeleteदीदी, आपको तो याद ही है...
Deleteअंत में परमात्मा ही मिलेंगे
ReplyDeleteआनंद, प्रेम, शांति, शक्ति, सुख, ज्ञान व पवित्रता
आभार
रमाकांत जी, स्वागत है...
Deleteमन के मार्ग पर चलेंगे तो अंत में सिवाय दुःख व बेचैनी के कुछ हाथ आने वाला नहीं है.
ReplyDeleteबड़ी मुश्किल में डाल दिया है आपने।
हम तो इस फिऑसफी में यक़ीन रखते आए हैं कि
मन को पिंजड़े मे न डालो
मन का कहना मत टालो
मनोज जी, आप स्वयं ही प्रयोग करके देख लीजिए..मन यदि हमारे कहे में चलता है तो मित्र है वरना...
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग
'विचार बोध' पर आपका हार्दिक स्वागत है।
शांति जी, आपका स्वागत व आभार !
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