१४ सितम्बर २०१६
सद्गुरू कहते हैं एक ही तत्व से यह सारा अस्तित्त्व बना है ! सारा खेल ऊर्जा का ही है
! मन भी ऊर्जा है और तन भी ! सब चेतना ही है, जो ऊर्जा बहती रहे वही सफल है. भोजन,
जल, सूर्य, नींद तथा श्वास सभी तो ऊर्जा के स्रोत हैं, हम जिनसे लेते ही लेते हैं,
लेकिन जब तक देना शुरू नहीं कर देते तब तक ऊर्जा भीतर दोष पैदा करना शुरू कर देती
है. रचनात्मकता तभी तो हमें स्वस्थ बनाये रखती है. यदि हम एक माध्यम बन जाएँ
जिसमें से प्रकृति प्रवाहित हो और अपना काम करती जाये, हम उसके मार्ग में कोई बाधा
खड़ी न करें, तो हम जीवन के साथ एकत्व का अनुभव करते हैं.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2466 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
स्वागत व आभार !
ReplyDeleteआत्मसात किया । आभार ।
ReplyDeleteप्रकृति से दूर होकर जीना सच्चे सुख से वंचित होना है.
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