२६ सितम्बर २०१६
शिशु जन्मता है और इक्कीस वर्ष की
आयु तक उसके शरीर का विकास होता रहता है, किन्तु बुद्धि के विकास की कोई सीमा नहीं
है. एक सामान्य व्यक्ति व्यस्क होने तक जिस ज्ञान को अपनाता है, उसी के आधार पर सारा
जीवन बिता देता है. वह कभी भी रुककर अपने स्वभाव, अपनी आदतों, मान्यताओं, धारणाओं तथा
पूर्वाग्रहों की जाँच नहीं करता, और बेवजह दुःख उठाता रहता है. भूतकाल में लिए गये
जो निर्णय वर्तमान में गलत साबित हो रहे हैं, यदि महज स्वभाव वश हम उन्हें दोहराए
चले जाते हैं तो भविष्य के लिए भी दुःख के बीज बो रहे हैं. साधक होने का अर्थ यही
है कि हम सजग होकर स्वयं का निरंतर आकलन करें, और एक सूक्ष्म दृष्टि से मन को
भेदकर सही-गलत का निर्णय करें और किसी भी क्षण जीवन में फेरबदल करने में पल भर भी
न झिझकें.
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