२७ सितम्बर २०१६
जीवन को यदि जागकर नहीं जीया तो
कदम-कदम पर बंधन की प्रतीति होगी. जागकर देखना क्या है, यही कि इतना बड़ा संसार
किसी अनजाने स्रोत से आया है, यह सारी सृष्टि किसी एक बड़े नियम से संचालित हो रही
है. हम भी इसी सृष्टि का एक अंग हैं, प्रकृति में सब कुछ अपने आप ही हो रहा है,
हमारे भीतर भी श्वास निरंतर चल रही है, रक्त का प्रवाह हो रहा है, भूख का अहसास हो
रहा है, भोजन पच रहा है. भीतर जो प्रेम आदि के भाव उठते हैं, उन्हें भी तो हमने
नहीं सृजा है, सुख-दुःख के भाव भी तो प्रकृति से मिले हैं. हमने जो कुछ भी पाया है
सब यहीं से मिला है. हम इसके साक्षी बनकर आनंद का अनुभव करें अथवा स्वयं को कर्ता
मानकर सुख-दुःख के भोक्ता बनें.
अति सुंदरं ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार अमृता जी !
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