२८ सितम्बर २०१६
सुख, शांति, प्रेम और आनन्द का
खजाना भीतर है और हम उन्हें बाहर ढूँढ़ते हैं. वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति से हमें
सुख मिलता हुआ प्रतीत होता है, पर है सब उधार का, उसका हिसाब चुकता करना ही पड़ेगा.
कभी सेहत की कीमत पर कभी रिश्तों की कीमत पर. यहाँ हर मुस्कान की कीमत आंसू से देनी
ही पडती है. यह जगत द्वन्द्वों के बिना टिक ही नहीं सकता. तभी तो कहते हैं संत के
लिए यह होकर भी नहीं होता क्योंकि वह द्वन्द्वातीत हो जाता है. उसने भीतर वे स्रोत
ढूँढ़ लिए हैं जहाँ बेशर्त बिना किसी कीमत के सुख के झरने फूटते रहते हैं. मीरा
कहती है, राम रतन धन पायो..कबीर गाते हैं, पानी विच मीन पियासी, मोहे सुन-सुन आवे
हांसी..
शाश्वत सत्य...
ReplyDeleteकस्तूरी कुंडल बसै ।
ReplyDeleteकैलाश जी व अमृता जी, स्वागत व आभार !
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