Wednesday, January 5, 2022

ध्यान का जो अभ्यास करे

देह में रहते हुए देहातीत अवस्था का अनुभव ही ध्यान है। स्थूल इंद्रियों से स्थूल जगत का अनुभव होता है, सूक्ष्म इंद्रियों से स्वप्न अवस्था का अनुभव होता है। गहन निद्रा में स्थूल व सूक्ष्म दोनों का भान नहीं रहता। ध्यान उससे भी आगे का अनुभव है, जब निद्रा भी नहीं रहती, चेतना केवल अपने प्रति सजग रहती है। ध्यान के आरम्भिक काल में इस अवस्था का अनुभव नहीं होता है, पर दीर्घकाल के अभ्यास द्वारा इसे प्राप्त किया जा सकता है। एक बार इसका अनुभव होने के बाद भीतर स्मृति बनी रहती है। इसे ही भक्त कवि सुरति कहते हैं। इस अवस्था में गहन शांति का अनुभव होता है, मन में यदि कोई विचार आता है तो चेतना उसकी साक्षी मात्र होती है। देह में होने वाले स्पंदन और क्रियाएँ भी अनुभव में आती हैं, किंतु साक्षी भाव बना रहता है। जब विचार भी लुप्त हो जाएँ और देह का भान ही न रहे इसी अवस्था को समाधि कहते हैं। समाधि के अनुभव से सामान्य बुद्धि प्रज्ञा में बदल जाती है। मन में स्पष्टता और आनंद का अनुभव होता है। 


No comments:

Post a Comment