Thursday, July 28, 2016

कर्म में ही आनंद छिपा है

२८ जुलाई २०१६ 
हम जिस समय जो भी कार्य कर रहे होते हैं उस समय उसका कोई मूल्य हमारी नजर में नहीं होता, बल्कि भविष्य में जो कुछ उस कर्म से मिलेगा उसे ही मूल्य देते हैं. जैसे कोई नौकरी कर रहा है तो महीने के अंत में मिलने वाले धन में उसका मूल्य देखता है, फिर जब धन मिलता है तो उसका मूल्य भी उन वस्तुओं में देखता है जो उससे खरीदी जाएँगी, और वस्तुओं का मूल्य तब होगा, जब वह मिलने वाले को प्रसन्न करेंगी, और इस तरह हम एक चक्र में घूमते रहते हैं. जीवन हमें अर्थहीन लगने लगता है, यदि हर पल ऐसा हो कि जो भी हम कर रहे हों अपने आप में ही मूल्यवान हो, तो जीवन उत्सव बन जाता है. 

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