१९ अप्रैल २०१७
यह संसार हमें मिला
है ताकि हम त्रिविध दुखों से बच सकें. आदिभौतिक, आदिदैविक व आध्यात्मिक दुखों से
पूर्ण मुक्ति के लिए ही यह जीवन हमें मिला है. जब तक यह ज्ञान हमें नहीं है, तब तक
हम नये-नये दुखों का निर्माण करते रहते हैं. पतंजलि के अनुसार अविद्या, अस्मिता,
राग, द्वेष तथा अभिनिवेश इन पंच क्लेशों से घिरे रहकर हम कभी भी दुखों से मुक्त
नहीं हो सकते. अविद्या का अर्थ है अनात्म को आत्म मानना, अर्थात जो हम नहीं हैं
उसे अपना स्वरूप मानना. अनित्य को नित्य, अशुद्ध को शुद्ध मानना, दुःख को सुख
मानना भी अविद्या है. अविद्या सभी क्लेशों का मूल कारण है। दूसरे शब्दों में अविद्या
भ्रांत ज्ञान है. अस्मिता का अर्थ है स्वयं को अर्थात् अहंकार बुद्धि और
आत्मा को एक मान लेना. ‘मैं’ और ‘मेरा’ की अनुभूति का ही नाम अस्मिता है। सुख और
उसके साधनों के प्रति आकर्षण, तृष्णा और लोभ का नाम राग है. चौथा क्लेश द्वेष है। दु:ख या
दु:ख जनक वृत्तियों के प्रति क्रोध की जो अनुभूति होती हैं उसी का नाम द्वेष है।
क्रोध की भावना तभी जाग्रत होती है जब किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को अनुचित अथवा
अपने प्रतिकूल मान लेते हैं। जो सहज अथवा स्वाभाविक क्लेश सभी को समान रूप से होता
है वह पाँचवा क्लेश अभिनिवेश है। सभी की आकांक्षा रही है कि उसका नाश न हो, वह चिरंजीवी रहे। इसी जिजीविषा
के वशीभूत होकर हम न्याय अन्याय, कर्म कुकर्म सभी कुछ करते है और विचार न कर पाने के कारण
नित्य नए क्लेशों में बँधते जाते हैं।
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