२७ अप्रैल २०१७
हम स्वयं को सिद्ध करना चाहते हैं , अपना आप इतना छोटा लगता है कि कुछ करके उसे भरना चाहते हैं. हमारे कृत्य उस खालीपन को भरने के लिए हैं न कि इस जगत को समृद्ध बनाने के लिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम स्वयं को जानते नहीं, अपने भीतर के उस खालीपन को भी नहीं जानते, जिसमें अपार सम्भावनाएं छिपी हैं . एक बार जो स्वयं को न कुछ होना स्वीकार लेता है जो वास्तव में सत्य है, तत्क्षण उसके जीवन में पूर्णता का अनुभव होने लगता है, कुछ नहीं को कुछ नहीं से ही भरा जा सकता है. इस ब्रहमांड में जो दिखाई देता है वह अदृश्य की तुलना में बहुत थोड़ा है. सूक्ष्म स्थूल से ज्यादा बलशाली है. हमारा खालीपन ही वास्तव में हमारी संपदा है और उसी से हम भागते हैं, यही तो माया है.
इस खालीपन में खुद को डुबोना भी कहाँ आसान होता है ...
ReplyDeleteकोशिश तो की ही जा सकती है, निश्चित ही व्यर्थ नहीं जाएगी...
Deleteसही है, प्रयास तो करना होगा और करते रहना होगा..
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