४ अप्रैल २०१७
परम तक जाने के दो ही मार्ग हैं, एक ज्ञान का मार्ग दूसरा प्रेम का मार्ग ! यह भेद आरम्भ में ही होता है, मंजिल पर जाकर दोनों मिल जाते हैं . ज्ञान का मार्ग संकल्प का मार्ग है, स्वयं को देह से अलग मानकर धीरे-धीरे श्वास, मन, व बुद्धि से भी अलग करते जाना है ताकि शुद्ध चेतना ही बचे, जहाँ केवल एक रहता है वहाँ परमात्मा ही रहता है. प्रेम का मार्ग कहता है परमात्मा के सिवा कुछ है ही नहीं, वहाँ आत्मा जगत के हर रूप में परमात्मा को ही देखती है. तब 'मैं' मिट जाता है, 'मैं' मिटते ही परम प्रकट हो जाता है. किसी भी मार्ग से चलें अहंकार को मिटाए बिना सत्य का अनुभव नहीं होता.
मैं को मिटाना ही अहंकार को मिटाना है. जब ये मिट जाता है तो सिर्फ प्रेम बचता है. ये प्रेम ही परमात्मा है.
ReplyDeleteसही कहा है आपने, स्वागत व आभार !
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