मार्च २०००
मन में जब कोई इच्छा उत्पन्न होती है तो जब तक वह पूरी न हो जाये कैसी खलबली सी मची रहती है, किसी दूसरे काम को हाथ में लेने का उत्साह भी नहीं रहता, अर्थात कामना पूर्ति में पराधीनता है, जड़ता है, ऐसा मन दर्पण की भांति कैसे अंतर की पवित्रता को दर्शा सकता है, मन खाली हो तो सहज ही स्वतंत्रता तथा चेतनता का अनुभव करता है. अब मन को खाली कैसे किया जाये, नाम जप इसमें सहायक है जो अपनी रूचि के अनुसार किया जा सकता है. किन्तु नियमित साधना की आवश्यकता है क्योंकि अच्छे कार्य यदि छूटेंगे तो व्यर्थ के कार्य होने लगेंगे और उनमें लगने पर अच्छे कार्यों का रस जाता रहेगा.
bahut hi achha likha hai
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