मार्च २०००
मन की गहराईयों में जाकर सारे विकारों को दूर करने का नाम ही ‘विपश्यना है’. लेकिन मन के भीतर जाएँ कैसे, पहले विचारों को कम करना होगा, और वह तब संभव होगा जब जीवन में शील व सदाचार होंगे. आहार सात्विक होगा. सहज स्वाभाविक साँस को देखते रहना भी मन को एकाग्र करने का एक सरल उपाय है. सुख-दुःख, हानि-लाभ आदि में सम रहने से भी हृदय सहज ही शुद्द रहता है तथा भावनायें उद्दात हो जाती हैं. निस्वार्थ भाव से जब हृदय ज्ञान प्राप्ति की आकांक्षा करता है तो ईश्वर की कृपा होने लगती है. नियति यही चाहती है कि हर व्यक्ति उस ध्येय को प्राप्त करे जिसे पाकर मनुष्य कृत-कृत्य हो जाये, हमारे जीवन में आने वाली सभी परिस्थितियां हमें जाने-अनजाने सजग करने के लिये ही आती हैं, ईश्वर सा धैर्य शाली कोई नहीं वह अनंत काल तक हमारी प्रतीक्षा करने के लिये तैयार है.
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