मार्च २०००
ध्यान के लिये कई बातें जरूरी हैं, सबसे पहली तो अध्यात्मिक ज्ञान की पिपासा फिर सांसारिक बातों से उदासीनता, स्वाध्याय, सत्संग और नियमितता. नियत समय पर नियत विधि से लगातार जब ध्यान करेंगे तब परिणाम मिलेगा लेकिन परिणाम की आकांक्षा न रखते हुए ध्यान करना है. श्रद्धा दृढ़ न होने पर रास्ता बहुत लम्बा लग सकता है. जिस मार्ग पर बुद्ध, नानक, कबीर, महावीर चले थे उसी मार्ग पर चलना है, जाहिर है रास्ता बहुत कठिन है पर असम्भव नहीं. मन को संयत करना अभ्यास व वैराग्य से ही संभव है, जैसा कृष्ण ने कहा है. अपने कर्तव्यों का पालन( शरीर, घर-परिवार, समाज के प्रति) करते हुए संसारिक लोभ व आकर्षणों से मुक्त रहने का प्रयास करना होगा, मध्यम मार्ग अपनाते हुए मानसिक विकारों को (क्रोध, लोभ, मोह तथा इच्छाएं), एक-एक कर दूर करते जाना होगा. मन जितना मुक्त होगा ध्यान उतना ही संभव होगा. किसी प्रकार की कोई अपेक्षा न रहे, सचेत रहना है. ईश्वर का ध्यान-भजन करते-करते ध्यान स्वयंमेव सिद्ध होने लगेगा.
भगवद्गीता में ध्यान की छठे अध्याय 'आत्म-संयम योग' में चर्चा की गई है.भगवान कृष्ण श्लोक ३५ में बताते हैं " नि:संदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होनेवाला है,परन्तु यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है."
ReplyDeleteआपने सुन्दर प्रकार से ध्यान की चर्चा की है.बहुत बहुत आभार.
सुंदर चिंतन ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह चिन्तन एवं विचार...सहमत हूँ.
ReplyDeleteबेहद सार्थक चिंतन ।
ReplyDeleteमार्गदर्शन करने वाली पोस्ट...जाने कैसे आपका ये ब्लॉग अछूता रह गया था....मैंने पहली बार ही देखा है शायद.....आज ही फॉलो कर रहा हूँ।
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