अप्रैल २०००
पल भर भी सजग न रहें तो मन झट नीचे के स्तरों में चला जाता है. यह प्रयास रहे कि मन उद्ग्विन न हो, ऐसा नहीं कि जोर-जबरदस्ती की जाये, सहज स्वाभाविक स्थिति में यदि मन रहेगा तो शांत रहेगा. आतुरता तो हम ऊपर से ओढ़ लेते हैं, कोई बात मन से न निकलती हो तो जानना चहिये कि सजगता खो गयी. हर क्षण भूत या भविष्य का चिंतन न कर वर्तमान को सही परिप्रेक्ष्य में देखकर जागृति का अनुभव किया जा सकता है. एक सीमा तक ही बुद्धि हमारा साथ देती है, उसके बाद तो ईश्वर का ही आश्रय है. इस जग का जो भी नियंता है, वही हमें आत्म ज्ञान दे सकता है. आत्मा परमात्मा का ही प्रतिबिम्ब है, प्रतिबिम्ब में परिवर्तन करने के लिये वस्तु में परिवर्तन लाना होगा. ईश्वर से प्रेम करना, उसका चिंतन करना ही उसके गुणों को हममें प्रतिबिम्बित करेगा. वह आनंद स्वरूप है सो हमारी मनोदशा भी सहज सुखपूर्ण ही रहेगी.
अनुपम चिंतन,सार्थक विचार.
ReplyDeleteईश्वर से प्रेम करना, उसका चिंतन करना ही उसके गुणों को हममें प्रतिबिम्बित करेगा. वह आनंद स्वरूप है
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.