सितम्बर २००४
साधना के पथ पर कोई वीर ही चल सकता है, यहाँ कायरों का कोई काम नहीं, एक चुनौती है यह
पथ, जिसे बहादुर ही स्वीकार सकते हैं. मन को निरंतर समता के पथ पर बनाये रखना कोई
बच्चों का खेल नहीं है, कई बार साधक विफल होता है पर भीतर जो कचोट उठती है वही उसे
पुनः पुन उठकर चलने को प्रेरित करती है. समता नष्ट होते ही अशांति का अनुभव होता
है, जो मानव का मूल स्वभाव नहीं है. ईश्वर का मूल स्वभाव आनन्द है, उसने हमें भी अपने
निज स्वरूप में बनाया है. जगत से प्राप्त हुई प्रसन्नता क्षणिक है, जो मन अनुभव
करता है, पर मन आत्मा के सागर पर उठी लहर है जो अभी है, अभी नहीं, तभी कोई भी सुख
हमें पूर्ण तृप्ति प्रदान नहीं करता. जब यह लहर स्वयं को आत्मा का ही एक रूप जानती
है तब उसे ही चाहती है और तभी मन समता में टिकने लगता है.
विल्कुल सही,साधना के पथ पर कोई वीर ही चल सकता है.
ReplyDeleteसाधना के पथ पर कोई वीर ही चल सकता है, यहाँ कायरों का कोई काम नहीं, एक चुनौती है यह पथ,
ReplyDeletesaty wachan shashwat kathan
ईश्वर का मूल स्वभाव आनन्द है, उसने हमें भी अपने निज स्वरूप में बनाया है.
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, रमाकांत जी व राहुल जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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