सितम्बर २००४
जैनधर्म का अनेकांत सिद्धांत कहता है कि किसी भी घटना को अनेक
कोणों से देखकर ही उसके बारे में राय देनी चाहिए. किसी व्यक्ति के बारे में भी कुछ
कहते समय प्रतिपक्ष की राय भी देखनी होगी, एकांगी दृष्टिकोण हमें अहंकारी बनाता
है. समाज में रहते हुए हमें अनेकों की सहायता लेनी पडती है. एक-दूसरे से हमें कुछ
अपेक्षाएं होती हैं, हमारा जीवन ऐसा हो कि
किसी के लिए असहजता का कारण न बने. क्योंकि वास्तव में यहाँ कोई दूसरा है ही नहीं,
एक ही है जो अनेक होकर दीखता है, हम किसी को दुखी करके स्वयं को ही दुःख पहुंचाते
हैं.
बहुत सुंदर प्रेरक सन्देश ,,,
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
बहुत सही कहा ,जो अपना टेलेंट है उससे दूसरे की मदद करो और अपनी कमजोरी के लिए दूसरे से सहयोग लो उसके टेलेंट का प्रयोग करो .बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सही कहा ,जो अपना टेलेंट है उससे दूसरे की मदद करो और अपनी कमजोरी के लिए दूसरे से सहयोग लो उसके टेलेंट का प्रयोग करो .बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने ...दुःख देने से दुःख और सुख देने से सुख ही मिलता है ...!!
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी, वीरेंद्र जी व अनुपमा जी, स्वागत व आभार!
ReplyDeleteहमारा जीवन ऐसा हो कि किसी के लिए असहजता का कारण न बने.....
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