सितम्बर २००४
जो स्वयं मुक्त है वही दूसरों को मुक्त कर सकता है. जीवन
मुक्त होने की क्षमता हम सभी के भीतर छिपी है, कोई सद्गुरु मिल जाये जो स्वयं
मुक्त हो तो वह हमें मार्ग दिखा सकता है. कामनाओं का अंत नहीं है, भीतर सात्विक
संकल्प जगा के ही इनसे मुक्त हुआ जा सकता है, ऐसे संकल्प जो हमें तृप्त करें,
क्योंकि यदि हम पूर्णकाम होंगे तो हमारे आस-पास के वातावरण को हमसे कोई भय नहीं
होगा, हमें उससे कुछ भी न चाहिए तो वह हमारी ओर विश्वास से देखेगा. हमारी तृप्ति
अन्यों के संतोष का कारण भी बनती है, वास्तव में हमें कोई अभाव नहीं है, जब हम
स्वयं से दूर हो जाते हैं तो विरह की अग्नि हमें जलाती है, भीतर कोई कसक उठती है,
हम संसार से उसका समाधान चाहते हैं, पर जो स्वयं ही उसी अग्नि में जल रहा है, वह
हमारी प्यास क्या बुझाएगा. जैसे ही हम भीतर उतरते हैं, अमृत का निरंतर बहता स्रोत
नजर आता है. यही देखकर तो कबीर ने गाया है- पानी विच मीन प्यासी..आखिर अस्तित्त्व
क्या यूँ ही अपनी सृष्टि को भटकने के लिए छोड़ देगा, वह जो प्रेम स्वरूप है, नहीं,
वह तो निरंतर हमारे साथ है, भीतर जाकर उससे मिलना हमारा काम है.
कामनाओं का अंत नहीं है, भीतर सात्विक संकल्प जगा के ही इनसे मुक्त हुआ जा सकता है....
ReplyDeleteकामनाओं का अंत नहीं है, भीतर सात्विक संकल्प जगा के ही इनसे मुक्त हुआ जा सकता है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
दिल को छू गई सुप्रभात
ReplyDeleteनिःशब्द करती अभिव्यक्ति
राहुल जी, धीरेन्द्र जी व रमाकांत जी आभार !
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