सितम्बर २००४
रामकृष्ण परमहंस अनोखे लगते हैं, वह ईश्वर से इतने एकाकार हो चुके
थे कि हर क्षण उसी भाव में रहते थे, वह कितने सरल स्वभाव के थे और यदि कोई ऐसा
व्यक्ति उनके सम्मुख आता था तो कितने प्रसन्न हो जाते थे. वह अपने आप में एक मिसाल
थे. ईश्वर को उन्होंने कई प्रकार की साधनाओं के द्वारा प्राप्त किया था. उनके जैसा
व्यक्ति यदा-कदा ही संसार में आता है. ईश्वर ही उन्हें भेजता है अथवा तो ईश्वर ही
मानव रूप में आता है उन्होंने कितने कष्ट सहे, ईश्वर होने से ही कोई कष्टों से
मुक्त हो जाये ऐसा नहीं होता, कष्टों के बावजूद उनकी निष्ठा, अनन्य भक्ति में
रंच मात्र भी फर्क नहीं आया, बल्कि वह बढ़ती ही गयी. हम जो अपने आप को भक्त मानते
हैं थोड़ी सी पीड़ा से ही व्यथित हो उठते हैं. स्वयं को प्रकृति के बंधन से अलग करके
जीना ही ज्ञान में जीना है.
स्वयं को प्रकृति के बंधन से अलग करके जीना ही ज्ञान में जीना है.
ReplyDeleteयह समझ पाना सब के बस में कहा शाश्वत प्रस्तुति
रमाकांत जी, यदि मानव को दुःख से मुक्त होना है तो समझना ही पड़ेगा...आभार !
Deleteस्वयं को प्रकृति के बंधन से अलग करके जीना ही ज्ञान में जीना है.....
ReplyDeleteराहुल जी, आभार !
Deleteजब भी रामकृष्ण परमहंस का नाम सुनता हूँ तो मन में एक दिव्य रौशनी पैदा होती है उनका इस धरती पर आना एक वरदान की तरह लगता है। आपने जो-जो लिखा अक्षऱशः सत्य है।
ReplyDeleteसचमुच उनका जीवन एक जलती हुई दीपशिखा के समान है..आभार !
Deleteअरुन जी, स्वागत व बहुत बहुत आभार !
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